क्या ईश्वर या भगवान है? और अगर है तो किस रूप में है और हम उन्हें कैसे देख सकते हैं?

क्या ईश्वर या भगवान है? और अगर है तो किस रूप में है और हम उन्हें कैसे देख सकते हैं?

 

शिवलिंग

एक बहुत बड़े पश्चिमी दार्शनिक थे कांट, उनके अनुसार भगवान होने और न होने के बहुत सारे तर्क दिए जा सकते हैं लेकिन यदि कोई ये कहता है कि भगवान अवश्य होते हैं या नही होते हैं तो वह झूठ बोल रहा है। कोई भी दोनों में से किसी एक बात को पूर्णतः प्रमाणित नही कर सकता।

तो भगवान के अस्तित्व को नकारना और स्वीकार करना हर किसी के लिए वैकल्पिक है।

भारत में नौ दर्शन हुए हैं जिनमें से षट (छः) दर्शन भगवान के अस्तित्व को स्वीकार करके उनके अलग प्रमाण देकर समझाते हैं । बाकि तीन दर्शन बौद्ध, जैन और चार्वाक में भगवान के अस्तित्व को नही माना गया है।

जब भी कोई तर्क देता है तो वो सभी इन नौ दर्शन के जैसे ही होते हैं। किसी के भी तर्क इनसे बाहर नही जाते।

मैं व्यक्तिगत रूप में भगवान के अस्तित्व को महसूस करता हूं इसलिए उसी तरह से देखने की कोशिश करता हूं।

चलिए भगवान के निर्गुण रूप को देखने की कोशिश करते हैं।

घर में रखा हुए बारीक पिसे हुए मैदे या बेसन में से एक चुटकी निकाल लीजिए। अब उसमें से एक कण को निकाल कर अलग कीजिए। इतने बारीक कणों में से सिर्फ एक कण को अलग करके देखने में ही शायद समस्या होने लगे।

मान लो अलग कर भी लिया और अब मैं पूछूं की उसका आकार कैसा है, गोल, चौकोर अर्धगोलीय तो क्या आप सही सही बता पाएंगे? मतलब जब हम सूक्ष्म रूप की तरफ जाते हैं तो गुणों का निर्धारण करना मुश्किल होता जाता है।

अब इसी कण को अगर हम किसी और विधि से और छोटे कणों में विभाजित कर पाए तो हमारी इन्द्रियों और इस दुनिया में उपलब्ध संसाधनों से उसको देखना भी संभव नही होगा। तो क्या उसका अस्तित्व खत्म हो गया?

वास्तव में अब वो हमारी सामर्थ और समझ के परे हो गया।

भगवान का यही रूप अव्यक्त है, निर्गुण और निराकार है क्योंकि हमारे पास ऐसे संसाधन नही हैं जिससे उसके इतने सूक्ष्म रूप को जान सकें।

लेकिन उन दिखाई भी न पड़ने वाले मैदे के कणों को हम इकट्ठा करके बोरी में भरते हैं तो उसके गुण(रंग रूप आदि) दिखाई पड़ने लगते हैं। वैसे ही ब्रह्म का सगुण रूप है।

चलिए फिर से देखते हैं। जब हम पृथ्वी पर खड़े होते हैं तो उसके आकार का अंदाजा नही लगा सकते क्योंकि वो हमारी तुलना में बहुत बड़ी है। इसी प्रकार इस ब्रम्हांड का विस्तार और आकार कितना है इसका भी अंदाजा नही लगाया जा सकता। हमारे वैज्ञानिकों ने ये जानने के लिए टेलिस्कोप आदि लगा रखे हैं। लेकिन हम जानते हैं की प्रकाश की गति सीमित है और हमारी आकाशगंगा के दूसरे छोर से किसी तारे को हम तक पहुंचने में पचासों साल लगते हैं। तो हम किसी चीज को तभी तो देख सकते हैं जब उससे प्रकाश हम तक पहुंचे। तो अभी तक एक निश्चित दूरी पर स्थित तारों का प्रकाश ही हम तक पहुंचा है तो हमें बस ब्रम्हांड के उतने विस्तार का ही अंदाजा है वो भी बिल्कुल अल्प।

कहने का मतलब ये है की जब हम विशालता या ब्रह्म के विराट रूप की तरफ भी जाते हैं तब भी गुणों का निर्धारण करना मुश्किल होता जाता है।

भगवान का यह रूप भी अव्यक्त है, निर्गुण और निराकार है।

मतलब विराट रूप और सूक्ष्म रूप के बीच में तो भगवान सगुण और व्यक्त रूप में हैं जिनको हम अपनी इन्द्रियों से महसूस कर भी सकते हैं और जैसे जैसे सूक्ष्म या विराट की तरफ जाते हैं तो भगवान निर्गुण और अव्यक्त होते जाते हैं।

तो जब भगवान कृष्ण गीता में कहते हैं कि ये ब्रम्हांड और समस्त जीव मेरे से ही उत्पन्न हुए हैं तो वह ब्रम्ह के उसी अव्यक्त रूप से व्यक्त रूप में आने की बात को ही समझा रहे हैं। जैसे मेंदे के उन छोटे छोटे कणों को इकट्ठा करके ब्रेड बनता है वैसे ही जीवात्मा परमात्मा का ही व्यक्त रूप हैं जो मृत्यु के पश्चात् फिर से अव्यक्त हो जाता है।

भगवान के इसी रूप को समझाने की कोशिश वेदों में भी की गई है।

अब समस्या यह आती है की जब हम अव्यक्त रूप को अपनी इन्द्रियों से समझ ही भी पाते तो अनुभव कैसे करें? तो इसी के लिए ज्ञानमार्ग, योग की ध्यान से होती हुई समाधि तक की प्रक्रिया और अनेक साधनाएं बताई गई हैं जो व्यक्ति को परब्रम्ह से एकरूप करके उसका अनुभव करा सकती हैं।

लेकिन यह करना सबके बस में नही था इसलिए वेदों और उपनिषद् के बाद पुराणों की रचना की गई।

इनमें भगवान को सगुण रूप में लोगों के सामने लाया गया। और हम ऊपर जान ही चुके हैं की जब सगुण रूप में भगवान आयेंगे तो वो हर बात में एक सीमा में बंध जाएंगे।

भगवान के ये सगुण या मूर्ति रूप मन को एकाग्र करके चिंतन और भक्ति मार्ग में विशेष रूप से सहायक हैं।

इन सभी सगुण रूपों में उस परब्रम्ह के अलग अलग गुणों को दर्शाया गया है क्योंकि अगर एक ही सगुण भगवान ब्रम्ह के सभी गुणों को दर्शाने की तरफ जायेंगें तो वो भी अव्यक्त हो जायेंगे जैसा की गीता में कृष्ण का रूप या शिव की वो कथा जिसमें विष्णु जी, शिव के विराट रूप और ब्रह्मा जी उनके सूक्ष्म रूप के अंतिम छोर का पता लगाने का प्रयास करते हैं।

बहुत कुछ लिखा और समझाया जा सकता है जो सब पहले से ही हमारे वेदों, उपनिषदों, गीता, ब्रम्हसूत्र, शंकराचार्य जी, रामानुजाचार्य जी आदि के अद्वैत दर्शन, नागार्जुन के शून्यवाद आदि में अलग अलग तरीके से समझाया गया है।

Shree Gangasagar

नमस्कार दोस्तों, मेरा नाम है सत्येंद्र सिंह founder of ShreeGangasagar.com

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